तिरोत सिंह-1

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14

मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…

यू तिरोत सिंह का जन्म सन् 1802 में हुआ था और मात्र 33 वर्ष की आयु में सन् 1835 में इनका स्वर्गवास हो गया।
सन् 1829 से लेकर 1833 तक मेघालय की खासी पहाड़ियों में यह नाम अंग्रेजों के लिए आतंक बना रहा।

मेघालय में एक छोटे से राज्य का यह “खासी राजा” कभी भी अंग्रेजों के सामने नहीं झुका और उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की। तिरोत सिंह ने कभी भी अंग्रेजों के अत्याचार के आगे सर नहीं झुकाया और न ही कभी अपने लोगों पर अत्याचार होने दिया। उन्होंने स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखी और उत्तर पूर्व भारत के अपने पड़ोसी अन्य राज्यों को भी अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरणा दी।

किन्तु हममें से कितने लोगों ने भारत माँ के इस बहादुर बेटे के बारे में सुना है? हमारे कितने ऐसे वीर योद्धाओं की तरह वे भी गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो कर रह गए हैं। और किस लिए??
केवल इसलिए ताकि भारत के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना दोबारा न पनप सके। यह वामपंथी और अंग्रेज इतिहासकारों की कुटिल चाल ही थी कि ऐसे वीर योद्धाओं को इतिहास में स्थान नही दिया।

हमें हमारी इतिहास की पुस्तकों को एक बार पुनः लिखना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इन बहादुर योद्धाओं के विषय में जान सकें और उनसे प्रेरणा लेकर उन्हीं की तरह देश भक्त बन सके।

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