सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा:- 14
मेघालय के राजा जो सन् 1829 से सन् 1833 तक अंग्रेजों के लिए आतंक बने रहे…
यू तिरोत सिंह नोंगख्लाव के राजा थे। यह मेघालय की ‘खासी पहाड़ियों’ में एक छोटा सा राज्य था। वह अपने क्षेत्र के कई कबीलों के भी सरदार थे।
उनके पूर्वज *सेमलियाह और खासी जनजाति के थे। उनके पूर्वज मंगोलिया से कश्मीर होते हुए असम और खासी पहाड़ियों तक आए थे।
अंग्रेजों ने 1826 में ‘यान्दबू की संधि’ के बाद भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह संधि प्रथम एंग्लो बर्मा युद्ध के बाद हुई थी। यह युद्ध दो वर्षों तक चला था और इसमें हजारों यूरोपीय और भारतीय सिपाहियों ने अपनी जान गंवाई थी।
इस संधि के अनुसार अंग्रेजों का कब्ज़ा असम, मणिपुर, राखाइन (अराकान), सालवीन नदी का तनिनथाई तक का दक्षिणी तट, कछार और जैंतिया पहाड़ियों तक हो गया था।
अंग्रेजों ने इनमें से अधिकतर जगहों पर चाय के बागान लगवा दिए थे और ब्रिटिश अफसर एवं सेना तैनात कर दी थी।
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