वीरापांड्या कट्टाबोम्मन-3

सदियों तक चली घुसपैठी आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध की गाथा-20

जिन्होंने ब्रिटिश राज का विरोध किया और उन्हें दो बार हराया…

विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया। इन राज्यों के राजा पहले विजयनगर के अधीन सामंत हुआ करते थे।
नायक्कर पांड्या क्षेत्र के शासक थे। पूरे क्षेत्र को 72 पलायम में विभाजित किया हुआ था। एक पलायम का शासक पलायक्कर कहलाता था। उसकी जिम्मेदारी अपने पलायम का प्रशासनिक, न्यायिक और सैनिक कामकाज सम्भालना था।

क्षेत्र में कर एकत्रित करना और एक स्थाई सेना रखना भी पलायक्कर का ही उत्तरदायित्व था। आवश्यकता होने पर पलायक्कर एकत्रित होकर नायक्कर शासकों की सेना में अपनी स्वयं की सेना सहित सम्मिलित होते थे।

वीरापांड्या कट्टाबोम्मन के पूर्वज जगवीरा पांड्यन के दरबार में एक मंत्री थे। राजा के कोई पुत्र नहीं था, उन्होंने कट्टाबोम्मन को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। आगे चलकर 2 फरवरी, 1790 को वीरापांड्या कट्टाबोम्मन 30 वर्ष की आयु में पंचालनकुरीची पलायम के पलायक्कर बने।

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